कथा

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गजल

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खाना नपुग्ने पिडित समुदाय धेरै छन् यहाँ,
धनीका एक गरीबका सजाय धेरै छन् यहाँ,

ठिकै लाग्छ उद्देश्यहरू, जनताकै लागि भन्छन्,
जनतालाई नै दुःख दिने निकाय धेरै छन् यहाँ,

ठाउँ अनुसार तन्दुरुस्त, बलिया, निर्मुल होलान्,
दिन दुःखी, रोगी अनि असहाय धेरै छन् यहाँ,

मान्छेकै घरमा मान्छे दास बन्छ र धोखा खान्छ,
साहस दिने दोषीका लागि प्रायः धेरै छन् यहाँ,

लुट्नसम्म लुट्छन्, दलाली किसिम किसिमका,
काम उही तरीका फरक व्यवसाय धेरै छन् यहाँ,

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लजाके हेर्ना तोहार बानी गज्जब के लागल।
गड्रयाइल जिउ उ जवानी गज्जब के लागल।

कट्कुइया फुलल जैसिन खुलल तोहार मुहार,
मिठ चवन्नी मुस्कानके खानी गज्जब के लागल।

आघे पाछे बटै लजर लगुइयनके लाइन फेें हेरो,
मैयक नाफामे तोहार लगानी गज्जब के लागल।

बनाइल अर्घटहा तोहार उ टिरछी लजरसे यहाँ,
छोरलो मुटुम बाणके निशानी गज्जब के लागल।

सिकार बनल हस बा अपनहि उ सिकारी फेन टे,
कहुँ बनट कि नै हेरो इ कहानी गज्जब के लागल।

संगम कुस्मी।

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मुक्तक

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कबु यहंर कबु ओहंर, सोंच्टी रह्गैनु।
इ छाटी भिट्टर टुहिन, खोज्टी रह्गैनु।
जब् मोर आगेसे, डोलिम् सज्के गैलो,
मै रोइटी रोइटी आँस, पोंछ्टी रह्गैनु।

अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी गाउँपालिका-८
जबलपुर कैलाली

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किताब कलम बोक्ना हाथेम, बम् बोकैलो
एकचोट नै शोषकौ हम्रहन, हरदम् बोकैलो
हमार हंस्ना खेल्ना उमेरमे,हम्रहन दास बनाके
अपन हातहतियार हमार, झोलम् बोकैलो

अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी गाउँपालिका-८
जबलपुर, कैलाली

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मुक्टक, गजल मन बहलैना गिट !
पहिचानके आगे संस्कृटिक जिट !!
चाहे जहाँ जाउ, आखिर जहाँ रहो !
बिन्टी बा, ना बिसराउ आपन रिट !!

साहित्यकार-हनुमान चौधरी

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अचेल हुँदैछ हरचिजमा हार तिमी गएदेखी
सम्हालिन नसकि रुन्छु यार तिमी गएदेखी
हिजो यि कुकुर यि बिराला नि प्यारा लाग्थे
आज लाग्दैछन सब बेकार तिमी गएदेखी

अंकर अन्जान सहयात्री

जानकी ८ जबलपुर कैलाली

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तुहिन एक नजर का देख्नु मनपराइ लग्नु ।
कुछ कबो कि कैक, डान-डान डराइ लग्नु ।

मन नै मानल फेन मै तुहिन खोज आई लग्नु,
कल्पना के डोसर डुनियम आझ हेराइ लग्नु ।

देबेन्द्र चौधरी
पटेला गाउँ धनगढी
हाल नेपालगन्ज

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मैयक पल्रम मैयाँ आपन ज्वाख निसेक्नु
जब रह म्वार लग्घु उहिसे ब्वाल निसेक्नु
उ याड अइठि या ट मै याड कर्ठु हुकिनहँ
मै राटिक साँपा रुइनु मने स्वाँच निसेक्नु

सन्देश दहित

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कविता

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किताब कलम बोक्ना हाथेम, बम् बोकैलो
एकचोट नै शोषकौ हम्रहन, हरदम् बोकैलो
हमार हंस्ना खेल्ना उमेरमे,हम्रहन दास बनाके
अपन हातहतियार हमार, झोलम् बोकैलो

अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी गाउँपालिका-८
जबलपुर, कैलाली

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‘बुडी’

उमरके का भर आजकाल ?
पचास हो कि साठी ?
टनिक ढेउर उमरके बटी
डुब्बर, चोङ्ल्याइल पक्क कबी
अर बुडी ! काहुन् बरे आँटी ।

टेक्नी टनिक बाँङ, कब रठी बेर्रा भाङ
कब कह्रहीं ग्वाबर ! गुइँठा पट्निक पटान
लिरौसी का बा ? जगत ड्याखल किऊ ?
चिम्मर बटी बुडी, चिउँसल बटिन आङ ।

सलहो रीति बोक्ल बटी, संस्कार फेन
सलहो जाति बोक्ल बटी, डम्कार फेन
ठेठ्ठोक, चोल्लेक का बाट बट्कोही ?
अर गोन्यम व चोल्लेम बटी गम्कार फेन ।।

थारु कबो जात पुरान
किऊ रल दाङ, गैल किऊ बुह्रान
ओस्ट मजा सुन्टी बात पुरान
डर्ठी फे बुडी मेह्रिक आहान ।।

भुुर्र से उर्ना चिरैयाँ, हुर्र से अइना बतास
भर क्याकर मन्बोे अर कर्बो क्याकर आश
भिन्सह्रे उठ्ना बानी, केक्रो डाइ, केक्रो नानी
हामा बुडिक बटिन छुट्ट कहानी ।।

सहेर्ली आपन पर्‍यार
हर्चाली सँगे खेतीपाती
पर्वट्वम चहुर्ली व कर्ली पट्या काठी
चिउँसल, चोङ्ल्याइल व चिम्मर हामा बुडी बाटी ।।

पुरान-लौव, आघ-पाछ सक्कु लेल्ह नेङ्ठी
का विगार का सही सक्कु ऊह डेक्ठी
रिवाज बोक्ल, रीति बोक्ल थारुन्हक सक्कु चीज
बुडी हामा विगत व वर्तमान सक्कु बोक्ल बटी ।।

राजकुमार कान्छा

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कविता: ‘बाँदरहरु

बा उ ति को हुन?
जोकर जस्तै देख्छु त,
हैन हैन,
कालो मुँख,लामो पुच्छर भएको
बाँदर जस्तै देख्छु,
अँह,
फेरी सडकमा डङ्गुर खांदै
हिड्ने कुकुर जस्तै देख्छु त?
मैले सुनेको,
बाँदरहरुले आफ्नो घर बनाउँदैनन्

अरुको पनि बन्न दिंदैनन् रे हो बा?

हो छोरा तिमिले ठिक भन्यो,
तिमिले जे जे देख्यो,त्यो सही देख्यो,
ति जोकर नै हुन्
ति बाँदर नै हुन्
ति कुकुर नै हुन्
जो विभिन्न भेषमा आएर,
आफ्ना असली जातको प्रदर्शन गर्दैछन् !

अंकर अन्जान सहयात्री

जानकी-८ जबलपुर कैलाली

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टुहिन स्वाझ पाके लुटक खोज्ठै
टुहार सर सम्पति हप्कक रठै
टुँ जुन चुपचाप रठो वइनके झन
हिम्मत बहरटी जाइटीन टुँ बाट
करे ब्याला डरैठो अक्मकैठो आपन
अढिकार मागे ब्यला पाछे पछ्गुर्ठो

उ चलाख बा टुहिनसे बहुट चलाख
टुहार हंक अढिकार डब्टी बा
टुहीन नोकर बनाइक लाग बा
टुहिन ठारु कैके हेप्टी बा
टु जुन चुपचाप बाटो लाट
मनै जस्ह गालम हाठ ढार्के

टुहार नेहेग्गा चोलिया भेगुवा
सुटीया टरीया नठिया डेख्के
खिजुवाइटा छिनक ला बा
बगाइक ला बा जराइक ला बा
सक्कु पुर्खा मेटाइक बा

कब जग्बो कब बल्गर हुइबो
टुहार पहिचान गोर्हाइटा बचाउ
कहटा टुँ नाइ सुन्ठो कि सुनक
बुढी नाइ कर्ठो कि पहिचान
बचाइक डराइटो हा टुँ “गन्जुवा”
….
लेखक : सुरज अखेल
राजापुर २ बरगदही, बर्दिया
हाल : सुर्खेत

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निबन्ध

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शीर्षक – ‘मंघहा लैयक् आगी’
समय: माघके महिना राटिक् 7 बजे
कलाकारहुंक्रे:
1) नम्मोछिया(बुडु)(पुर्खामनै)
2) सुन्दरी(नटिन्याँ)(5 वर्षक लर्का)
3) सोन्चिर्वा(मस्टर्वा)(पर्हल लेखल मनै)
4) सुख्ली(सुन्दरिक् डाई)
5) गमुवा(नम्मोछियक् छोट्की छावा)

(माघेक् महिना जार बहुट जोरसे बर्हल रहठ, घर छोटमोट हुइलेक ओरसे घरेक् बहरिमे पैंरक् पट्ठ्री लगाइल रहठ, डेंहरीक् उप्पर ढारल मट्टि टेल्हा डिया ढिपढिप बर्टी रहठ,कबु कबु हावा बहठ टो डिया फे बुटेबुटे करठ, एकओर बज्रा केवाँरके संन्ढ्रीमे पुरान फाटल फाटल कम्रा ओहोरके आगिक् लैया अगोर्ले बैठल रहठ नम्मोइया, और डोसर ओरजुन् नटिन्याँ(सुन्दरी) लैयक् आगी डन्ठासे खिट्कोर्टी मकै भुज्टी रठिस्, उहे समयमे)

नम्मोछिया : (नटिनियैँ गरियैटी) रि बुडी लैयक् आगी काजे खुड्बुडुवाइटे ? मकै वकै भुजट नै हो इ लवन्डी,खाली सैल लैयक् आगी भुट्भुट्वाकिल डेहटा, यहाँ बर्का जोर से जार लागटा, दाँतओट खट्खटाइटा, इ जुन मकै भुजके आगि बुटैनामे लागल बावै, (नम्मोछिया माघेक् महिना हे गरियैटी) इ जारेक् महिना फे जने काकरे आइठ, मै जैसिन बुर्ह मनैन टे जिट्टी मुवैनाहस् करठ, ऐसिन जारमे कैसिन सुटे सेक्जाई,? सुटे जैले से पट्ठ्री जुरे जुर रहठ, पट्ठ्री डंडैना फे घण्टौ लागठ, का कर्ना हो का नि,,! जत्रै जार लागठ ओत्रै सनाक् सनाक् रिस उठट्। (फेर से नटिनियैं मैयाँसे गरियैटी) अभिन टो एकचोट कहलेक् बाटे नै मानठो इ लवन्डी, झट्टा जा मकै-वकै भुजभाजके खाके सुटे,! बिहानके फेर स्कुल जैना रही टोर।

नटिन्याँ : (ठोंठक्  मकै निखोर्टी) इ बुडु फे कत्रा गरियाईटा,न मकै भुज डेहठो न टो भुजे डेहठो खाली गरियाइठकिल बा, मै मकै भुजे नाई जन्ठु टो कैसिक् भुजु,? कि टो टै भुज डे मोरलाग मकै, काल बिहानके मै स्कुलमे लैजिम् नास्टा बनाके, यहाँ स्कुलमे बर्का भुँख लागठ, सबकोई खैठै मै टो हेर्ठु,

नम्मोछिया : (नटिन्यँक् हाँठेमनसे मकैक् ठोंठा छिन्टी) लान मकै मैं भुजडिउँ, टैं जा नुइयाँ लेहे,टब्टो भुजल कमै ढर्बे नुइयाँमे, (नम्मोछिया नटिन्याँ हे खेल्वार कर्टी) हेर बुडी मकै भुजेक् टो कहले मनो मै भुजौनी मकैक् लवारा खैम् टैं डवाँची खाइस ना, मै बुर्हागैल बाटु,(नटिन्याँ हे मुह् बा के डेखैटी) हेर हेर मोर डाँट टो अक्को फे नै हो, सब् टुट्गैल बा, अब सक्कु मकैक् लवारा भुजा मोर बटहा ना(नम्मोछिया ठिट्ठा मारके हाँसठ्)

नटिन्याँ : (रुवाँइन छुवाँइन मुह लगैटी) नाइ बुडु नाइ, मै नै डेम टुहिन मकै भुजे, टैं मोर सक्कु मकै खा डेबे टो मै का लैजिम् स्कुल ? टैं खाइस् डवाँची मकै मै लवारा मकै स्कुल लैजिम्, (नुइयँक् मकै खेलैटी) बुडु इ हेर टो यहाँ सक्कु मकै डवांचिकिल बा, टैं नै जन्ठे मकै भुजे, लान् मैं भुजु ।

(अत्रै कहटी सुन्डरी मकै भुजे लागठ, उहे समयमे सों सों फों फों कर्टी सोन्चिर्वक् प्रवेश हुइठ)

सोन्चिर्वा : (सों सों फों फों कर्टी, और गम्छाले मुह् पोंछ्टी) काकु..काकु… ऐ काकु कहाँ बाटे ?

नम्मोछिया : (भिट्टर से खोंख्टी बोलठ) के हो ना काकु काकु कहटा ? (नम्मोछिया बोली बिचारठ और कहठ) ए मस्टरान् सोन्चिर्वा हुइटे ?

सोन्चिर्वा : (घरेक् भिट्टर पेल्टी) हाँ काकु मैं सोन्चिर्वा, ( यहंर उहंर हेर्टी, बेर्चिम् बैठ्टी) खै टो काकु टोर छोट्की छावा गमुवा ?

नम्मोछिया : (हुँक्का पिटी) काकरे खोजटे गमुवैं टैं अत्राजुन् ? जुन न बेला, सायड अपन  बर्का फुफन् घर गैल हुई ।

सोन्चिर्वा : (लैयक् आगिमे हाँठ सेंक्टी) काकरे नै खोजम् टो, उहाँ गाउँमे माओवाडी आइल बाटैं, जवान जवान लौरन् पकर पकर के लैजाइटै, माओवाडी बनाइक् लाग, अब्ब भर्खर टो कब्लिहान रजेस्वा हे पकर के लैगिनै, ओकर डाई खुब् रोईटिस् उहाँ, टबमारे मैं गमुवा कहाँ बा कहिके टोर घर डौरट डौरट ऐनु टुहिन बटाई, (माओवाडिन हे गरियैटी) टोर बर्का छावा हे फे उ बेर इहे माओबाडी हुइटै कि खाउँबाडी हुइटै बेपट्टा पर्नै, अब एक्कठो टो टोर छावा बा, उहिन फे टोर बर्का छावकहस् बेपट्टा पारडिहीं टो टोर बुर्हापा के लट्ठी के बनी ? टबमारे मै टुहिन गमुवै राटबिराट घरसे बाहेर घुमे जाई नाई डिहिस् कहिके बटाई ऐनु काकु।

नम्मोछिया : (हुँक्कक् चिलम् उटर्टी) हाँ भैया का कर्बे, इ संकटकाल लागल टबसे टो, यहाँ गाउँघरमे हाहाकार मचल बा, कबु किहिनो टो कबु किहिनो इ माओबाडी हुँक्रे पकरके लैजा लैजाके बेपट्टा पारल खबर सुन मिलठ, (लम्मा सांस लेहटी) मोर बर्का छावा हे फे इहे माओबाडी पकरके लैगिनै, टबसे मोर बर्का छावक् कोनो अट्टो पट्टो नाई हो, कहाँ हुइ मोर छावा ? जिटी बा कि मुंवल पटै नै हो, (नटिन्याँ हे डेखैटी) इ सुन्डरी हे फे कत्रा ठग्ना हो, टोर बाबा टोरलाग् मिठाई लेहे गैल बा बराडुर कहिके, रोटडिन् आपन डाई से पुँछ्टी रहठ, बाबा कहिया आई डाई, बाबा कहिया आई कहिके, ओकर डाई फे अपन आँखिक् आँस पोंछ्टी छाई हे टोर बाबा टोरलाग बिर्कुल ढेर मिठाई लैके ऐहीं कहिके झुठा आश्वासन डेहटी, छाइक् बाट हे टर्टी आइल बा।

सोन्चिर्वा : (लैयक् आगी खिट्कोर्टी) का कर्बे काकु ? इ डेस डेखके फे ढिक्कार लागठ, इ डेस मे कब् सान्टी आई ? कब् हम्रे चैनके निड सुटे पैबी ? कबु यहाँ टो कबु उहाँ रोटडिन बम गोला पट्कल् सुन्जाइठ, रोटडिन मनै मुंवल खबर सुन मिलठ, हम्रे कबसम् ऐसिक् डरा डराके जियब्, (लम्मा सांस लेहटी) काकु आजकल इ डेसके हाल डेखके टो, महिन फे इ डेसमे नै बैठ्नास् लागठ, एकओर सोंच्ठु इन्डिया चल्जाउँ, फेर सोंच्ठु, मै बाहेर चलजैम् टो मोर घरकुरिया के हेर्डी ? इहे सोंचके कहुँ जाई नै सेक्ठुँ, बस् डरा डराके बैठल पर्ली रहठुँ गाउँमे ।

(नम्मोछियक् और सोन्चिर्वक् बाटचिट हुइटी रहल बेला सुख्लिक् प्रवेस)

सुख्ली : (अपन गोंन्यम् भिजल हाँठ पोछ्टी) बाबा भाट कब् खैबो? बरा रात होगैल जे, (सुन्दरी हे हेर्टी) इ लवन्डी फे अभिनसम् मकै भुज्टी बा, सुटे जाइक् छोरके, जा झट्टे सुटे पट्ठ्री लगाइल बा।

नम्मोछिया : (सुख्लीक् ओर हेर्टी) आज भुँख टो नै लागल हो, मने एकचुटी लैके आ, खा लिउं, (सोन्चिर्वै हेर्टी) टैं फे खैबे भैया भाट,? आज टोर भौजी गब्डक् पटियक् पटोस्नी बनैले बा, खैबे टो खा ले एकचुटी।

सोन्चिर्वा : नाई नाई काकु, मै भाट खा के आइल बाटुँ, जस्टेक् भाट खा के सेक्नु, ओस्टेक् मै टोर घरवर ऐनु, (भौजी हे बेर्टी) बरु भौजी एक-डुईठो गब्डक् पटियक् बनाईल पटोस्निक् खँरिया चिखेक् लाग डोनियाँ मे लान डेऊ, कैसिन बा टोहाँर बनाइल गब्डक् पटोस्नी?

सुख्ली : (गोनियाँ झरैटी, बेर्चिमनसे उठ्टी) लेउ लेउ भैया मै लैके आइटुं, जनो कैसिन बा, मिठ बा की नाइ हो जनो, टोहाँर गोसिन्यँकहस् टो मिठ बनाई नै जन्ठु।(सुख्ली हंस्टी भन्सामे चलजैठी)

सोन्चिर्वा : (हंस्टी) लेउ लेउ, टुं पहिले लैके टो आउ, टब् बटैम् कट्रा मिठ बनैले बाटो कहिके।

नम्मोछिया : (लैयामे सुखल कन्डी डर्टी) भैया आजकल स्कुलके पर्ह्राई कैसिन् चलटा टो? लर्का स्कूल जैठैं कि नाई जैठैं टो? बरा कम् कम् जाईठ डेख्ठुँ स्कुलिह्या लर्कन्? कि स्कुलके छुट्टी बा? जार बिडा,?

सोन्चिर्वा : (निरास हुइल भावमे) खै काकु का कहना हो का… नी, स्कुल टो चालु रहठ, मनो विद्यार्थी बरा कम् ऐठैं, जार पर्लेक्ओर से हो कि, संकटकाल लग्लेक्ओर से हो, बरा कम विद्यार्थी स्कुल ऐठैं, आजकल माओवाडी फे छोटछोट लर्कन पकर-पकर लैजाइटैं, सायड उहे डरसे फे हुइ सेकी काकु।

नम्मोछिया : (अचम्म मन्टी) नाई टो भैया इ माओवाडी बर मनैन् टो पकर-पकरके लैजाइटैं, मनो इ छोट लर्कन काकरे पकर-पकरके लैजाइटैं टो,? मै इ बाटभर बुझे नाइ सेक्नु, कुछ् बाट टो बुझा भैया, आखिर काकरे?

सोन्चिर्वा : काकरे नि लैजैहीं, छोट लर्कन टो उहाँ गोला, पटाका, बमके झोला बोकैठैं,  टबमारे टो छोट लर्कन पकरके लैजैठैं, किहिनो सुराकी बनैहीं, किहिनो अपन सामान बोकैहीं, टबमारे फे हुइ सेकी काकु, आजकल लर्का स्कुल जैना डरैठैं, इ माओवाडीहुंक्रे लर्कन् लैजाके बिच्चमे बेपट्टा पारडेठैं टो।

(उहे समयमे सुख्लिक और गमुवक् प्रवेश हुइठ)

सुख्ली : (लोटक पानी भुइँयम् ढर्टी) लेउ बाबा पानी और भाट (सोन्चिर्वै डोनियँम् पटोस्नी डेहटी) लेउ भैया टुँ फे खाउ पटोस्नी, जनो कैसिन बा।

गमुवा : (हांठ पोछ्टी) भौजी मोरलाग फे भाट खौंक्के लानडेहो, मै हांठ ढो के आ सेक्नु, बर्का जोर से भुंख लागटा।

सुख्ली : (भन्सम् जैटी) लेउ लेउ मैं लैके आइटु, असिया लग्हो।

(अत्रै कहटी सक्कु जे भाट खाइ लग्ठैं, और फेर से गफ सुरु होजाइठ)

सोन्चिर्वा : (डोनियाँ चट्टी)बब्बा हो बहुट मिठ बनैले बाटो हो भौजी पटोस्नी, अब्ब बर्का डाडा रहठ टो, खुब खाइठ हाँठ चाटचाट,(मन भोहर बनैटी) मनो का कर्ना हो, डाडुक् कौनो अट्टोपट्टो नाई हो, अभिनसम् कुछ खबर नै हुइटिस्, मुवल बा कि जियल बा, कहाँ बा? कैसिन बा? कुछ् खबर नै हो।

नम्मोछिया : (लोटियक पानी पिटी, सोन्चिर्वक बाटमे बाट ठप्टी) महिन टो भैया बर्का छावक् याडमे भुँख पियास फे नाइ लागठ आजकल, खाली छावक् याडकिल आइठ, पटोइह्या फे चिम्टक् झारे कत्रा डोङ्लागैल बा, सुखाईल सन्ठीहस्, (पटोइह्यकओर हेर्टी) हेर हेर चिम्टक् झारे भुट्ला फे सक्कु झरके पाटिर होगैल बाटिस्, जुर्राउर्रा पारे नै बन्ठिस्, काँसेक् हड्डी फे बर्का जोर से डेखैठिस्, बिचारी पटोइह्या चिम्टा नाई करी टो फे का करी, मै टो डुईडिनके पहुना हुइटु, मोर टो आज हो कि काल पटा नै हो, तर एकर टो बर्का लम्मा जिन्गी बाटिस्, कैसिक् काटी अकेली? उप्परसे एक्ठो छाई बाटिस्, एकर भविष्यक् बारेम् फे सोचट हुई, टबमारे टो जत्रा खैले पिले से फे ठुल्हाइठ नाइ हो मोर पटोइह्या।

सोन्चिर्वा : (भौजी हे हेर्टी) हाँ काकु भौजी डोङ्ला टो गैल बाटै, भौजी बहुट चिम्टा कर्ठी डाडुक्, टबमारे हरहर् हरहर् सुखैटी जाइटी, (भौजी हे सम्झैटी) ऐसिक चिम्टा नाइ लेहो भौजी, डाडा एकडिन पक्कै फे लौटके आइ, एक्ठो बहटी रहल लडिया टो बार्ह्र बरष पाछे लौटठ् कठैं, डाडु टो मनै हो, जबसम् सांस टबसम् आस कठैं, डाडुक् ऐना आस कबु नाइ मर्हो भौजी, (नम्मोछियै हेर्टी) हेर काकु टैं फे ढेर चिम्टा नै लिहिस्, टोर छावा एकडिन पक्कै लौटके ऐने बा, ढिरज ढारिस्, बरु गमुवा हे जहाँ तहाँ राटबिराट घुमे जाइ नाई डिहिस्, समय खराब चलटा, अब टोर घरेक् फुल्टी रहल फुला, एक्ठो आसके डिया उहे टोर छोट्की छावा गमुवा टो हो।

सुख्ली : (मसिन बोलीमे, आँखीमे आँस टिल्पिल्वैटी) भैया चिम्टा नाई लेहम् कठु, टबु खै कैसिक इ जिउ नै मानठ चिम्टा लैमर्ठु,  राटडिन सुर्टा ओहँरी रहठ, उप्पर से इ छाई फे सटैटी रहठ, बाबा कहिया आई…कहिया आई मोरलाग मिठाई लैके कहिके? टबमारे टो महिन और याड आइ लागठ हुंकार, (लम्मा साँस लेहटी) मै फे का करु भैया, छाई हे ठागट ठागट फे मिच्छा गैल बाटु, बहुट चिन्टा लागठ छाइक् भविष्यक् बारेम् सोंच्ठु टो, मै जन्नी मनै का करे सेकम् अकेली? कहाँ जैम्? कैसिक् जियम् अकेली इ जिन्गी? छाई फे डिनेडिने जवान हुइटी जाइटा, एकर बहर्टी गैलेक् आवश्यकटा कैसिक् पुरा करम्? मै इहे सब् बाट सोच्ठु टो रोइनास् लागठ भैया।

सोन्चिर्वा : (लैयक् भुट्भुटाइल आगी खिट्कोर्टी) भौजी का कर्बो, टुहुनके जिवनमे अस्टे लेख डेहल रहल हुइ इ भगन्वाँ, कत्रा मजा परिवार रहे टुहुन, सब् टहस् नहस् पारके चलगैल्, अब इ डेसमे सान्ती कबु नाइ आइ कि का ? चारुवर हट्या हिन्सा, बलाट्कार चोरी डकैटी हुइटी रहठ, ऐसिक् कैसिक् डेस आघे बर्ही ? डेसमे प्रजाटन्त्र आइल, लोकटन्त्र आइल, गणटन्त्र आइल मनो खै कहाँ गैल उ सब् ? खै टो जनटा सुखके निंड सुटे पाइटै ? खै टो डेसमे सान्ती ? यहाँ टो लोकटन्त्र प्रजाटन्त्रके नाउँमे जनटन टाटुल कराहिम् भुठ्नाकिल काम हुइटा, नेट्वन् आपन कुर्सी बचैनामे व्यस्त बाटैं, डेस बिकासके काम एकओर ढारके अप्नेभर डेस बिडेस घुमटैं, लाखौं करोडौं खर्च करटैं डेस बिडेसमे घुमके, आपन डेसमे जुन बिकासके लाग डुई रुपिया खर्च कर्ना डरैठैं, (लम्मा साँस लेहटी) काकु इ डेसके राजनीटी डेख्के फे महिन टो डिक्डार लागठ,  सब् अपन अपन पेट भर्नामे लागल बाटैं।अब इहे हाल रही टो हमार डेसमे कबु नाइ आइ सान्टी, हम्रे जनटा अस्टेके चपेटामे पर्टी जैबी, राटबिराट, डिनडुपहर बेपट्टा हुइटी जैबी।

नम्मोछिया : (बैठ्ले बैठ्ले अपन पुस्टा संवर्टी) हो भैया का कर्बे, एकओर डेसके चिम्टा लागठ, एकओरजुन छावक् चिम्टा लागठ, का कर्ना हो का नै, मै टो सोंचे फे नाई सेक्ठुं, उडिन घर्चोरान सम्ढिक् छावक्  लहास फे उत्रेक् नौसरिम् मिलल रहे, कत्रा घिन्हुन से मारपिटके फेकैले रहैं इ माओवाडिन, मोर छावा हे फे अस्टेक् मारके कहुं फेका डेहल हुइही टबमारे टो अभिनसम् अट्टोपट्टो नाइ हो मोर बर्का छावक्, (मनमे साहस जुटैटी) मनो भैया मै अभिनसम् हिम्मट नै हारल हुइटुं, मोर छावक् लहास नै मिलठसम्, मै मोर छावक् ऐना डग्गर हेर्टी रहम्, और मोर पटोइह्या हे फे राँर मनै लगैना लुग्गा लगाई नै डेम्, मै इ डेसमे सान्टीके आसमे बाटुं, सान्टी एकडिन जरुर ऐने बा, मोर छाटिम् परल खाटीके बिर्वा करे, और इ डेस हे सुन्डर सान्ट बनाई, जरुर ऐने बा भैया जरुर ऐने बा।

(राट फे ढिरेढिरे बहुट जोरसे छिपगैल रहठ शान्टी(नटिन्याँ) अपन डाइक् कोनुम् निंडागैल रहठ, सब्के आँखी निडके झारे रसैटी रहठ उहे समयमे सोन्चिर्वा बोलठ।)

सोन्चिर्वा : (पिर्कामनसे उठ्टी) लेउ टो काकु और भौजी राट फे बहुट होगैल, मै फे जाउँ अब घरवर, उहाँ टोर पटोइह्या फे कहाँ गैनै कहिके खोज्टी हुइही, टुहुरे फे सुटो और ढेर चिम्टा नाई लेहो, डाडु एकडिन जरुर लौटके ऐने बा, (हाँठक् घरी हेर्टी) राटिक् 12 फे बजे लागल बा, गाउँ सुनसान होगैल, मै फे जाइटु काकु, बरु एक्ठो लट्ठी डे, कुक्कुर फे खुब् भुँख्ठैं, इहे लट्ठी से मार्के डर्वैम्।

नम्मोछिया : (चिम्ढार आँखी मिस्टी) ले टो भैया ठिके बा, मजा से जाइस्, राट बहुट छिपगैल बा, समय फे नाई मजा चलठो आजकल, सम्हलके रहिस्, और सक्कु जन्हन हे सम्झैटी बुझैटी रहिस्, ले टो भैया राम राम।

(नम्मोछिया सुख्ली और सोन्चिर्वा एक डोसर से राम राम कर्टी बिडाई लेहठैं, पर्डक् पाछे से राटके बोल्ना किराकाँटिनके आवाज ऐटी रहठ, कुक्कुर भुँकल आवाज आइठ, डुरडुर से गिडारिनके बोलल आवाज आइठ और मन्चमे बरल ढिमढिम मढुर लाइट झम्से बुटठ्, पर्डा गिरठ, नाटक् ओराजाइठ)

लेखक् : अंकर ‘अन्जान सहयात्री’
जानकी गाउँपालिका-८

जबलपुर,कैलाली

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विश्व ब्रह्माण्डमा इतिहास खोतल्दै हेर्दा शासक र शासित, उत्पीडक र उत्पीडित, मालिक र नोकर, गोरा र काला, सत्ता र प्रतिपक्ष विज्ञानले सावित गरेको सर्वमान्य नियमन बनेको छ । यी वर्गको विचमा जहिले पनि संघर्ष निरपेक्ष नै अस्तित्वमा रहेको छ । यसलाई मानवियताको दृष्टिकोणले अध्यात्मिक ब्याख्या भगवान र राक्षस, भौतिक
बादी विश्लेषण प्रगतिसिल र रुदीबादीको रुपमा देखिने र जीवन व्यवहारमा भोगिने अभ्यास हुन । यी सबैमा राजनीति भईराखेको हुन्छ । यहाँको आ आफ्ना खालको दर्शन, विचार छन । यसलाई व्याख्या प्रस्तुत गर्दा आफु अब्बल भएको नै देख्न चाहन्छन् । तर यो भन्दा पुर्बको अवस्था हेर्दै जाँदा वा आदिम साम्यवादी युगमा अस्तित्वमा रहेको सम्पूर्ण सबै सहअस्तित्व स्वीकार गरिएको देखिन्छ । जब संसारमा मानवहरुको जन घनत्वो वृद्धि हुँदै गयो । त्यसपछि लुछाचुँडी तेरो मेरो श्रृजना भयो । विश्वमा विभिन्न खालको अन्तरसंघर्ष द्वन्द्व मारामार काटाकाट आफु बाहेक अरुलाई विभिन्न शैलीमा नामेट गर्ने अभ्यास भयो । किनकि माग र आवश्यकता एकापसमा सन्तुलन खलबलिन थाल्यो ।

संसारको सबै अस्तित्वमा रहेका आफ्नो माग र आपुर्तिको सन्तुलन मिलान गर्न आ आफ्ना समूह बनाउन थाले र महाभारतको लडाइ, विश्वयुद्ध, शीतयुद्ध जस्ता ठूलठूला लडाइ भए । जसको प्रतिविम्व कुनै न कुनै बाहाना नाउँमा सानो ठुलो भित्र बाहिर आन्दोलन/लडाइँ भईराखेको छ । आज यस परिवेशमा आइपुग्दा विभिन्न खाले आन्दोलन र सहअस्तित्वको स्वीकारोक्ति भईराखेको छ । माथिल्लो विभिन्न पातापक्ष र विभिन्न खालको आपसिक टक्कर विकासोन्मुख राष्ट्र नेपालको बारेमा अहिलेको राजनीतिक गैर राजनीतिक घटनाक्रमको विषयलाई लिएर आफ्नो धारणा प्रस्तुत गरिदै आएको छ ।नेपाल एउटा कृषि प्रधान मुलुक भएकोले यहाँको उत्पादन स्वामित्व यो या त्यो रुपमा एकात्मक नै रहेकोले त्यसको सामुहिक स्वामित्वको लागि विभिन्न समय बेलाबखत आन्दोलन संघर्ष अविस्मरणीय अतुलनीय दिर्घकालिन महत्त्व र प्रभाव पार्ने खालको भएको छ । नेपालमा राज्य एकिकरणको नाउँमा भौगोलिक र हरेक उत्पादन आयश्रोतको केन्द्रीकृत गरियो । उत्पादन केन्द्रीकृत गरेर केही शासकहरुले मात्र उपभोग गरि रहेका छन । तर उत्पादनमा जोडिएका मजदुर कृषक उपभोगबाट बन्चिट भएका छन । हाम्रो नेपालमा मजदुर कृषक र मालिक विचको अन्तरद्वन्दबाट श्रृजना भएको आन्दोलन जारी छ । राज्य सत्ताको संविधान, कानुन, शासकीय स्वरुप कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका सामन्ती दलालको पहुँचमा मात्र छ ।यहाँका वास्तविक मजदुर, कृषक, महिला, दलित, जनजाति, लोपोन्मुख, बहिरगमनमा परेका मानिसहरुको पहुँच सम्बन्ध हुन सकेको छैन ।
विभिन्न प्रकारको मजदुर वेरोजगार भएर जीविकोपार्जन गर्न धौधौ भएको छ । कुनै उद्योग धन्दा कलकारखाना छैन । भएको सरकारी स्वामित्वको कारखाना जीर्ण अवस्थामा छ । वास्तविक किसानको आफ्नो जमिन छैन । कृषक मजदुर अघोषित कमैया छन । उत्पादन गरेर कुनै न कुनै बाहानामा केही न केही रुपमा जग्गा मालिकलाई खुशी वा विना ज्यालाको निजि घरमा काम गरिदिनु पर्ने अवस्था छ । वास्तविक किसानले उत्पादनको लागि समयमा बीउ, मल, सिचाइ, कृषि सामाग्री, बजार पाउँदैन । उत्पादित वस्तुको मूल्य खरिदकर्ता मालिकले भने बमोजिम विक्रि गर्नु परेको छ । नेपाल सरकारले जब व्यापारी, मर्वादी कहाँ पुग्छ । ठिक त्यसै बेला धान गहुँको वजार र मूल्य निर्धारण गर्दछ । नेपालको आधा हिस्सा ओगटेका महिलाहरुलाई दोस्रो नागरिक सरह, बच्चा जन्माउने मेशिन र मनोरञ्जनको साधनको रुपमा मात्र हेरिएको छ । दलितहरुले उत्पादन गरेका उत्पादीत वस्तु मठमन्दिर, घरमा राख्न हुने तर उहाँहरु व्यवहारिक रुपमा
सार्वजनिक मन्दिर, मुल, कुँवामा जान नहुने यथावत नै छ ।

जनजातिहरुको राज्य खोसिएको छ । भाषा सरकारी
तथा पठनपाठनमा बन्चित गरिएको छ । आफ्नो संस्कार संस्कृतिमा रमाउ भन्छ । तर मान्यता दिदैन ।जस्तै भूईयाँलाई मन्दिर मान्दैन । इतिहास मिचिएको छ । सरकारी कर्मचारी बन्न सक्छ तर हाकिम बन्न सक्दैन किन ? लोपोन्मुख बहिरगमनमा परेकालाई राहत दिन्छ, तर रोजगार दिईदैन । कुनै सरकारी कार्यालयमा जाँदा पहिलो भाषा मिल्दैन । दोस्रो कामकाज गर्न सिकाई दिने मानिस मिल्दैनन् । मुद्दा मामिलामा जाउँ अदालत न्याय निश्पक्ष छैन । प्रहरी प्रशासनमा जाउ चिनजान छैन । बाटो देखाउने मानिस छैनन् । यी यावत व्याख्या गरे, भनाइको मर्म एकात्मक शासन प्रणालिको प्रवृत्ति जिउँकि टिउँ छ ।हरेक ठाउँमा हरेक राजनीतिक पार्टीका सदस्य छन ।हरेक ठाउँमा राजनीतिक पावर लगाउनुपर्ने प्रवृत्ति बस्यो । आज यो दुनियाँमा राजनीतिक झण्डा बोक्न बाध्यता श्रृजना भैसक्यो । तर कुन वर्गको दर्शन विचार उचाल्ने भन्ने प्रश्न हो । जो राजनीति गर्नु हुदैन भन्छ, ऊ सवभन्दा ज्यादा राजनीति गर्छ।यति मात्र फरक हो, कि कोही झण्डा बोक्लान त कोही विना झण्डाको । आज राजनीति एउटा खानाको गासमा पनि छ । कोले कति चतुर्‍याइँ/धुर्त्याइ गरिरहेको छ, त्यति फरक हुन्छ । आज ठिक यति बेला नेपाली राजनीतिमा खुरापात को राजनीति वजार पाएको छ ।

कुनै पनि वस्तुको सीमा निर्धारण गरेको हुन्छ ।
जब अन्यायकोसिमा पार हुन्छ, मृत्यु प्यारो भएर आउँछ । त्यसपछि विद्रोह शुरु हुन्छ । नेपालमा विभिन्न समयमा संगठित, असंगठित विभिन्न बेला आन्दोलन विद्रोह भएको इतिहास सावित छ । सो आन्दोलनमा उत्पीडितहरुको वलिदानी बढी देखिन्छ । किनकि सबभन्दा बढी उत्पीडनमा परेका छन, र मुक्ति चाहन्छन् । मालिकको विरोधमा किसान आन्दोलन भएको छ । एकात्मक जहाँनिया शासनको विरुद्धमा प्रजातन्त्रको आन्दोलन भएको छ । मजदुर किसान पेसागत हकहित, महिला, दलित, जाती, क्षेत्र र वर्गको समग्र वर्गीय जनयुद्ध र जनआन्दोलन भएको छ । पछिल्लो मधेस र थारु पहिचानको आन्दोलन जारी राखेका छन । यी सबै समानताको आन्दोलन भईराखेको छ । यसमा बढी जवाफ देहिता हिजो राज्यबाट सेवा सुविधा बढी लिए उहाँहरु नै हुनुपर्छ, र यसको सम्बोधन गर्न राज्य स्वयम अग्रसरता लिनुपर्छ । राज्य सत्ताको जन्म जेलनेल, अड्डा अदालत, सेना प्रहरी प्रशासनमा हुन्छ । यसको व्याख्या अस्तित्वमा रहेका राजनीति दल वर्गले आ आफ्नो दर्शन विचार कार्यदिशा र कार्यक्रमले निर्धारण गरेको हुन्छ । नेपालको संविधान कानुन र भगवान कसको शरणमा पर्ने बनाएको छ ।स‍ो सबै निर्धारण गरे बमोजिम हुन्छ । नेपालमा जहाँनिया, सामन्ती एकात्मक शासनको अन्त्यको आन्दोलनले स्थापित गरेको प्रजातन्त्र हो । किनकि हिड्डुल गर्न, बोल्न, पढ्न लेख्न पाउने अवस्था थिएन । प्रजातन्त्रमा सभासमारोह, गोष्ठी, राजनीतिक दल, संघसंस्था दर्ता गर्न पाइन्छ । यसको शब्दावली विशेषतः प्रजातन्त्र र नेपाली काँग्रेसले उचाले ।
जब निर्दल र बहुदलको आन्दोलनबाट बहुदलीय प्रणालि आयो । त्यसपछि कम्युनिस्ट पार्टीका महासचिव जननेता मदन भण्डारीले प्रतिपादित जनताको बहुदलिय जनबाद गरे । र पुर्ण संसदीय प्रणालिलाई आत्मसात गर्यो । यसै प्रक्रिया अभ्यास गर्ने क्रममा सदनमा नै ४० सुत्रिय शान्तिपूर्ण गास, बास र कपासको ग्यारेन्टी गर भन्दा कुनै सुनुवाइ भएन । उल्ता दमनको नीति अख्तियार गर्यो । ठिक त्यहि बेला संसद खसिको टाउको झुण्याएर कुकुरको मासु बिक्री गर्ने थलो हो भनेर संयुक्त जनमोर्चा र मसालले संसद बहिस्कार गर्यो । त्यसपछि नेकपा (माओवादी) को नेतृत्वमा दिर्धकालिन वर्गीय जनयुद्धको घोषणा गरि जनताको बिचमा एक्काइसौं शताब्दीको जनवादको कार्यक्रम बनाएर कार्यान्वयन गर्यो । यहि क्रममा राजनीतिक ठूलठूला परिवर्तनका घटना हुन गयो । यसको अर्थ बढी प्रयोग प्रजातन्त्र, जवज, एक्काइसौं शताब्दीको जनवाद आ आफ्नो दर्शन प्रस्तुत गरे । कोही प्रजातन्त्रको नारा बढी उचाले भने कोही जनवादको नारा उचाले ।आखिरमा जे उचाले पनि अधिकारको लागि उचाले ।अहिलेको आवश्यकता भनेको कर्तव्य सहितको अधिकार हो ।

एकात्मक सामन्ती शासनको अन्त्यसंगै संघीयता, गणतन्त्र , समावेशी र धर्मनिरपेक्षता सहितको
लोकतान्त्रिक गणतन्त्रको स्थापना भएको छ । आज यो परिवेशमा बाघ र बाख्रा एउटै जंगलको शेर भएको छ । कुनै एउटा वर्गको अन्त्य विना सह अस्तित्व स्वीकार गरिएको नेपालको संविधान बनेको छ । यसको कैयौं पक्षहरु कार्यान्वयनको चरणमा छ । कार्यान्वयन गर्न गराउने तहमा पुग्दा तदारुकता उचित नभैदिदा कैयौं प्रश्न उब्जाउन खोजी रहेका छन । यो व्यवस्था केही प्रतिगमन शासकको हातमा लड्डु बाँडेको जस्तो मात्र भएको छ । जसले गर्दा कैयौं असन्तुष्ट पक्ष आन्दोलन जारी राखेका छन, भने केही सिमित तत्व तानाशाह भयो भन्ने छ । यो सबैको स्वीकार्य भएको हुदा कमबेसि हुनु स्वाभाविक छ । बरु प्राप्त उपलब्धि तदारुकताका साथ अक्षर पालना र कडाइपुर्वक कार्यान्वयन पक्षमा उभिनु पर्ने भयो । जब वास्तविक कम्युनिस्टहरुको जनवादी गणतन्त्र रुपान्तरण भयो, भने के हुने होला ? कम्युनिस्ट शासन पद्वतिमा जनवादी केन्द्रीयता लागू हुने होला ।जथाभावी प्रजातन्त्रको नाममा अराजक, सुशासन विहिन, लगाम विनाको घोडा बन्न नपाइने होला । कर्तव्य सहितको अधिकार र सामुहिक जवाफदेहिता, व्यक्ति स्वतन्त्र र संस्थागत सरकार प्रती उत्तरदायी हुनुपर्ने हुन्छ ।

लोकतान्त्रिक गणतन्त्रमा सबैको सर्वमान्य भएको हुदा कुशलता पुर्वक कार्यान्वयनको विकल्प देखिदैन । यद्यपि यसलाई एकले अर्कोलाई सहअस्तित्व स्वीकार गर्न सकेनौं भने अगामि आन्दोलनको आँधिबेहरिले कता पुर्याउछ । उतै सोझिनु पर्ने हुनसक्छ । आज राज्यको हरेक उत्पादीत वितरण प्रक्रिया पारदर्शी हुन सकिरहेको छैन।जसले गर्दा जुन प्रक्रिया आए पनि सुशासनको अनुभुती दिलाउनु पर्छ । हिजोआजको फरक न्याय कानुन र नाम परिवर्तन भयो । मानवमा हुनुपर्ने परिवर्तन हुन नसक्नु विडम्बना हो । किनकि शैली, स्वाभाव, प्रवृत्ति, सोच पुरानै भयो, भने फेरि विद्रोहको झिल्का निभ्न नपाउनु देशको दुरदशा हो । लोकतान्त्रिक गणतन्त्र नेपालमा दलाल झन फस्टाउन थाले । विदेशी शक्ति केन्द्रको स्वदेशी एजेण्डद्वारा नाङ्गो हुन थाल्यो । विदेशी नेपालमा आएर दलाल नाङ्गो नचाउन थाले । यद्यपि स्वदेशी सोच स्वदेशी उत्पादन र स्वदेश आत्मनिर्भर हुनलाई सुशासनको पक्ष दरिलो बनाई देशभक्ति, स्वाभिमान नेतृत्वले राज्यसत्ताको कार्यकारी हुनुपर्छ । यसको लागि संसदीय दलाल अन्त्य गर्न संसदीय व्यवस्था खारेज संगै समाजवाद उन्मुख जनवादी गणतन्त्र स्थापना गर्नुपर्छ ।

नेपालको लोकतान्त्रिक गणतन्त्र स्थापनार्थ पुजीको उदय भएर दलालको हातमा पुग्न दिनु हुँदैन ।
देशभक्ति र स्वाभिमान राष्ट्रिय स्वाधीनताको लागि समग्र देशका बासिन्दा एक हुनुको विकल्प छैन ।देशमा भएका विभिन्न भावना समेत्न देशभक्ति हुनुपर्छ । जसरि नेपाल बाह्य र आन्तरिक स्वतन्त्र हुन चाहेको छ । त्यहि प्रकारको स्वतन्त्र पुर्वक राष्ट्रिय पुँजीको विकासमा उदृत गरिदै यहाँका
श्रोत साधन अधिक भन्दा अधिक परिचालन गरि रोजगारी श्रृजना व्यवहारिक रुपमा जोड दिनु पर्ने भयो । देशको सम्पुर्ण शक्ति श्रमसंग जोड्नु पर्य‍ो । सीप अनुसार एक व्यक्ति एक रोजगार अनिवार्य गर्नुपर्यो । सोही अनुसार उत्पादीत संस्थागत राज्यको कोषमा बाँडिनु पर्यो । राज्यले गास, बास र कपासको साथमा शिक्षा र स्वास्थ्यको ग्यारेन्टी गर्नुपर्यो ।मजदुर, किसान, पेशागत, महिला, दलित, जनजाती, वहिरगमन, लोपोन्मुख, क्षेत्र र वर्ग विहिनतिरको कार्यक्रम निर्माण गर्नुपर्यो । माथि उल्लेखित सबैको एकमुष्ट समाधान राज्य विहिन गर्नुपर्यो । पुँजीवादको अन्त्य समाजवादको निर्विकल्प मार्ग प्रशस्त् गर्नु पर्ने भयो । धन्यवाद ।
वीरबहादुर राजवंशी
कृश्नपुर-६ कंचनपुर

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हिरगर सम्बाददाता 

धनगढी ,३२, सावन

  भाषा, कला, चालचलन, रहनसहनमन धनी मानजिना थारू समुदायके गुरहि टिहुवार पाछे टिउहारिक अाेँरूवा खुलल मानजाइठ । हरेरी, लवागी, अस्टिम्की, अनट्टर, अटवारी, दश्या, डेवारी, माघ, धुरहेरी, भजहर लगाएत तमानेक टिहुवार रहल बा । यीहे पावन अवसर पारके हिरगर साहित्यिक बगाल अब्बा लग्गही अाइल हरेरी अाे अटवारीक  बिशेषा माैकाम सक्कु जहनके सुख, स्वास्थ्यक कामना कर्टी शुभकामना व्यक्त करल बावै । असाैक अस्टिम्कीक लग्गही महामारीक रूपमन अाइल बाहर के कारणा बहुत धनजनके फेन क्षती हुइलकमन दुःख व्यक्त करती सक्कुहुन सजक रना अाे सबजे अ अपन ठाँउसे सहयाेग करेपरल अाे जागरूक हुइकपरल फेन कहिके अर्जी हिरगर साहित्यक बगालके अध्यक्ष हिरालाल सत्गाैँवा कर्नै ।

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नन्दु राज चौधरी
दुनियाँ रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्ति हो । इहे शक्तिमे सारा जीव निर्जीव संचालित बटी । जौन शक्तिहे मनै किल महशुस कैके व्यक्त करे सेक्ठी । जौन आनन्द आध्यात्म शक्तिसे सिढे अन्तरनिहित वा । यी शक्तिक् वारेमे पहिलेसे आजटक खोजी हुइटी बा, विद्ववानलोग खोज्टी बटाँ ।
सृष्टिकर्ताहे का कारण परगैलिस कि यी मेरके दुनियाँ वनाइ पर्लिस ओ वनाइल । जहाँ सोँच्लक, चहलक सक्कु मेरीक शक्ति मौजुद बा । इहे सृष्टिमन्से के का माँगठ ? उ मेहनत ओ शुद्ध भावनासे संघर्ष कैके चहा जत्रा भारी चीज नारहे जरुर मिलठ । दुनियँक हरेक भौतिक चीज रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्तिमे एक आपसमे कौनो न कौनो नातासे जोडल रहठ ओ तुरुन्त असर करठ प्रकृतिमे । हम्रे संसारके चहा जौन ठाउँम् रहि, कौनो न कौनो रुपसे अदृश्य प्रेम शक्तिसे सहयोग करल करठ, लेकिन सहजिलेक् पटा या महशुस करे नैसेक्ठी ।
दुनियाँमे मनै या कौनो जीव जब जनम् लेठी, टपसे संसारिक हरेक गतिविधिमे कौनो न कौनो तरिका अर्थात् रुपभाव प्रकट करल करठी । अपन कर्मभोग अनुसार ओहे एक्के समयमे केउ का करठ टे केउ का । केउ कौन परिस्थतिमे रहठ टे केउ कौन । केउ का सोँचठ, चाहठ टे केउ का । केउ कुछ ठ पाइठ टे केउ गँवाइठ । केउ रोइठ टे केउ हाँसठ । केउ नाचठ टे केउ गाइठ । आव अपनेहे विचारी टे एकसाठ ओहे पलमे फरक–फरक काम, फरक– फरक व्यवहार, फरक–फरक भोग अनूभव महशुस करठी । यी सव केकर लग ? का करक लग करठी ? ओ करे परठ ? हम्रिहिन बुझे पर्ना वहुत जरुरट बा ।
हरेक मनैन्के अलग–अलग मेरीक घटना ओ चालचलन रठिन । ओहेसे मोर मन अचम्मित हुके कहठ ओ प्रश्न करठ– का करक लग, का करे, के ऐसिन विचित्र मेरके यी दुनियाँ वनाइल । असिन प्रकृया किहिहे आवश्यक पर्लिस टे वनाइल ओ सञ्चालित करल । ओ, अपने भर रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्ति नुकल, छिपल रैहगैल बा यी दँुनियामे । इहे प्रेम शक्तिक्े आँजरपाँजर रैहके मनै आपन चहलक विषयवस्तु खोज्ठाँ । ओ, अचम्मक भौतिक चीज वनाके डेखे भोगे पैठाँ, लेकिन कुछ घरिकलग किल । इहे नुकल, छिपल शक्तिक् खोजी करट–करट मनै अपन जिन्गीक् सारा समय गुजार डर्ठा, टौन फेन वास्तविक फेला पारे नैसेक्ठाँ । फेला परबी, टब्बोपर क्षणिक भोग्लक घटना, इतिहास, कथा, नियम, नीति, सिद्धान्त ओ धर्म संस्कृतिक वारेम् अध्ययन कर्वो टे फेन परिवर्तन हुइटी हालके यी अवस्था महशुस करे सेक्ठी । समय ओ प्रकृति किहुन्हे फेन भेदभाव नैकैके सक्हुन बराबर रुपमे शक्ति मिलल बा । इहे प्रेमयुक्त रचनामे हम्रे हमार मानव शरीर चलैना क्रममे अनेक नै सोँचल, नैचाहल विषय फेन भोगे परठ, जवटक जिअल करब, टबटक ।
हम्रे पुर्खन्के भोग्लक कैलक, सिखैलक, डेखैलक, कहलक विषयमे खासकैके जिन्गी चलाइ खोज्ठी । कौनो कौनो विषयमे चित्त नैबुझठ टे मनमुटाव कैके फेन चलाइ परठ । हरेक समय ओ परिस्थतिक वारेमे जानल करठी, वुझ्ठी लेकिन वास्तविक यथार्थ का हो, प्रेम कहना कहेवेर अन्योलमे रहे पर्ना हमार कमजोरीपन हुसेकठ ।
अन्तमे, मोर अनुभवसे कहना का बा कलेसे हम्रे यी दुनियाँमे रलक अदभूत शक्तिशाली प्रेम शक्तिक् माध्यामसे जत्रा फेन हम्रे हमार जीवनभर भोग्ले रठी, भोगल करठी, ओ भोगे परठ, यी सक्कु संसारहे सन्तुलन मिलाइक लग ओ सृष्टिहे बचाँइक लग जो हो । जौन वास्तविक यथार्थ विन्दु ज्ञान पाके सफल जीवन अनुभूति महशुस कैके खुसी आनन्दमे रहक लग ओ पूर्णता प्राप्त करक लग हो । ओहेसे दुई दिनके जिन्गीमे कुहिसे बैरभाव ना करी, हँसी खुशीमे जिई । ओम् नव शिवाय ।

लेखक सर्वहित समाज नेपाल, दाङ देउखरके अध्यक्ष हुइट

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