नन्दु राज चौधरी
दुनियाँ रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्ति हो । इहे शक्तिमे सारा जीव निर्जीव संचालित बटी । जौन शक्तिहे मनै किल महशुस कैके व्यक्त करे सेक्ठी । जौन आनन्द आध्यात्म शक्तिसे सिढे अन्तरनिहित वा । यी शक्तिक् वारेमे पहिलेसे आजटक खोजी हुइटी बा, विद्ववानलोग खोज्टी बटाँ ।
सृष्टिकर्ताहे का कारण परगैलिस कि यी मेरके दुनियाँ वनाइ पर्लिस ओ वनाइल । जहाँ सोँच्लक, चहलक सक्कु मेरीक शक्ति मौजुद बा । इहे सृष्टिमन्से के का माँगठ ? उ मेहनत ओ शुद्ध भावनासे संघर्ष कैके चहा जत्रा भारी चीज नारहे जरुर मिलठ । दुनियँक हरेक भौतिक चीज रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्तिमे एक आपसमे कौनो न कौनो नातासे जोडल रहठ ओ तुरुन्त असर करठ प्रकृतिमे । हम्रे संसारके चहा जौन ठाउँम् रहि, कौनो न कौनो रुपसे अदृश्य प्रेम शक्तिसे सहयोग करल करठ, लेकिन सहजिलेक् पटा या महशुस करे नैसेक्ठी ।
दुनियाँमे मनै या कौनो जीव जब जनम् लेठी, टपसे संसारिक हरेक गतिविधिमे कौनो न कौनो तरिका अर्थात् रुपभाव प्रकट करल करठी । अपन कर्मभोग अनुसार ओहे एक्के समयमे केउ का करठ टे केउ का । केउ कौन परिस्थतिमे रहठ टे केउ कौन । केउ का सोँचठ, चाहठ टे केउ का । केउ कुछ ठ पाइठ टे केउ गँवाइठ । केउ रोइठ टे केउ हाँसठ । केउ नाचठ टे केउ गाइठ । आव अपनेहे विचारी टे एकसाठ ओहे पलमे फरक–फरक काम, फरक– फरक व्यवहार, फरक–फरक भोग अनूभव महशुस करठी । यी सव केकर लग ? का करक लग करठी ? ओ करे परठ ? हम्रिहिन बुझे पर्ना वहुत जरुरट बा ।
हरेक मनैन्के अलग–अलग मेरीक घटना ओ चालचलन रठिन । ओहेसे मोर मन अचम्मित हुके कहठ ओ प्रश्न करठ– का करक लग, का करे, के ऐसिन विचित्र मेरके यी दुनियाँ वनाइल । असिन प्रकृया किहिहे आवश्यक पर्लिस टे वनाइल ओ सञ्चालित करल । ओ, अपने भर रहस्यमय अदभूत प्रेमयुक्त शक्ति नुकल, छिपल रैहगैल बा यी दँुनियामे । इहे प्रेम शक्तिक्े आँजरपाँजर रैहके मनै आपन चहलक विषयवस्तु खोज्ठाँ । ओ, अचम्मक भौतिक चीज वनाके डेखे भोगे पैठाँ, लेकिन कुछ घरिकलग किल । इहे नुकल, छिपल शक्तिक् खोजी करट–करट मनै अपन जिन्गीक् सारा समय गुजार डर्ठा, टौन फेन वास्तविक फेला पारे नैसेक्ठाँ । फेला परबी, टब्बोपर क्षणिक भोग्लक घटना, इतिहास, कथा, नियम, नीति, सिद्धान्त ओ धर्म संस्कृतिक वारेम् अध्ययन कर्वो टे फेन परिवर्तन हुइटी हालके यी अवस्था महशुस करे सेक्ठी । समय ओ प्रकृति किहुन्हे फेन भेदभाव नैकैके सक्हुन बराबर रुपमे शक्ति मिलल बा । इहे प्रेमयुक्त रचनामे हम्रे हमार मानव शरीर चलैना क्रममे अनेक नै सोँचल, नैचाहल विषय फेन भोगे परठ, जवटक जिअल करब, टबटक ।
हम्रे पुर्खन्के भोग्लक कैलक, सिखैलक, डेखैलक, कहलक विषयमे खासकैके जिन्गी चलाइ खोज्ठी । कौनो कौनो विषयमे चित्त नैबुझठ टे मनमुटाव कैके फेन चलाइ परठ । हरेक समय ओ परिस्थतिक वारेमे जानल करठी, वुझ्ठी लेकिन वास्तविक यथार्थ का हो, प्रेम कहना कहेवेर अन्योलमे रहे पर्ना हमार कमजोरीपन हुसेकठ ।
अन्तमे, मोर अनुभवसे कहना का बा कलेसे हम्रे यी दुनियाँमे रलक अदभूत शक्तिशाली प्रेम शक्तिक् माध्यामसे जत्रा फेन हम्रे हमार जीवनभर भोग्ले रठी, भोगल करठी, ओ भोगे परठ, यी सक्कु संसारहे सन्तुलन मिलाइक लग ओ सृष्टिहे बचाँइक लग जो हो । जौन वास्तविक यथार्थ विन्दु ज्ञान पाके सफल जीवन अनुभूति महशुस कैके खुसी आनन्दमे रहक लग ओ पूर्णता प्राप्त करक लग हो । ओहेसे दुई दिनके जिन्गीमे कुहिसे बैरभाव ना करी, हँसी खुशीमे जिई । ओम् नव शिवाय ।
लेखक सर्वहित समाज नेपाल, दाङ देउखरके अध्यक्ष हुइट