मुक्टक, गजल मन बहलैना गिट ! पहिचानके आगे संस्कृटिक जिट !! चाहे जहाँ जाउ, आखिर जहाँ रहो ! बिन्टी बा, ना बिसराउ आपन रिट !!
साहित्यकार-हनुमान चौधरी